चीन की शह पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुनेगी  पाकिस्तान के दुखड़े  बंद दरवाजे के भीतर

आखिर क्या मायने हैं बंद दरवाजे में सुनवाई के।
चीन की शह पर संयुक्त राष्ट्र संयुक्त परिषद सुनेगी  पाकिस्तान के दुखड़े  बंद दरवाजे के भीतर।



भारत पर इस  बंद दरवाजे की मीटिंग का कोई प्रभाव नहीं  भारत का कहना है कि बिना फॉर्मल मीटिंग के  कोई रिजर्वेशन पास नहीं हो सकता और जब तक कोई प्रस्ताव पास नहीं होगा तब तक ऐसी किसी भी मीटिंग का कोई प्रभाव नहीं हो सकता।
नई दिल्ली/देहरादून।धारा 370 धारा 35 ए का मामला भारत का आंतरिक मामला है जो भारत के अधीनस्थ कश्मीर का भाग है तथा भारत में पूर्णतया विलयीकृृृत है साथ ही यह भारत के संविधान के अनुरूप लिया गया कदम है इसलिए किसी भी देश को भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।


कश्मीर मुद्दा पाकिस्तान के लिए गले की फांस बन गया है। उसे पता नहीं चल रहा कि आगे करना क्या है। विश्व बिरादरी के सामने उसने अनुच्छेद 370 का मुद्दा काफी उठाया लेकिन उसकी एक भी दलील नहीं टिकी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लगभग सभी देशों (चीन को छोड़कर) ने उसे बैरंग लौटा दिया। अब सिर्फ चीन बचा है जो उसकी फरियाद सुन रहा है, वह भी दबाव में क्योंकि चीन का बहुत कुछ पाकिस्तान में दांव पर लगा है।


संयुक्त राष्ट्र चीन के गिड़गिड़ाने पर कश्मीर मुद्दे पर शुक्रवार को बैठक करने जा रहा है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि संयुक्त राष्ट्र जैसी मुखिया संस्था को बंद दरवाजे के पीछे बैठक करनी पड़े लेकिन पाकिस्तान के इशारे पर चीन जो न कराए। संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब कश्मीर मुद्दे पर कोई बैठक होने जा रही है। हालांकि दूसरी बैठक 1971 की पहली बैठक से कई मायनों में भिन्न है। पहली बैठक न तो बंद दरवाजे के पीछे थी और न ही सुरक्षा परिषद् के अधिकांश सदस्य देशों ने पाकिस्तान का समर्थन करने से मना किया था। यूएनएससी में 1969-71 में 'सिचुएशन इन द इंडिया/पाकिस्तान सबकॉन्टिनेंट' विषय के तहत कश्मीर का मुद्दा उठाया गया था।


संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) में कुल 15 सदस्य हैं। इनमें 5 स्थाई और 10 अस्थाई हैं। अस्थाई सदस्यों का कार्यकाल कुछ वर्षों के लिए होता है जबकि स्थाई सदस्य हमेशा के लिए होते हैं। स्थाई सदस्यों में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल हैं। अस्थाई देशों में बेल्जियम, कोट डीवोएर, डोमिनिक रिपब्लिक, इक्वेटोरियल गुएनी, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू, पोलैंड और साउथ अफ्रीका जैसे देश हैं।


स्थाई सदस्यों में चीन को छोड़ दें तो बाकी के देशों-फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने पाकिस्तान को ठेंगा दिखा दिया है। इनका स्पष्ट कहना है कि कश्मीर मुद्दा हिंदुस्तान और पाकिस्तान का आंतरिक मसला है, इसलिए दोनों देश मिलकर निपटें, किसी तीसरे पक्ष की इसमें दरकार नही।


ऐसा नहीं है कि चीन, पाकिस्तान का घनिष्ठ पड़ोसी है और वह अपने मित्र राष्ट्र के लिए कुछ भी कर सकता है। चीन के सामने बड़ी मजबूरी बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरओ) है जिसका बड़ा हिस्सा पाकिस्तान से होकर गुजर रहा है। सड़क निर्माण के इस बड़े प्रोजेक्ट में चीन ने बहुत कुछ झोंक दिया है. अरबों युआन की राशि उसने रोड प्रोजेक्ट में लगाई है और पाकिस्तान से यारी बनाए रखने के लिए वहां बड़ी मात्रा में निवेश किया है।


चीन बीआरओ प्रोजेक्ट प्रोजेक्ट के चलते पाकिस्तान का साथ देने के लिए मजबूर है यह प्रोजेक्ट चीन का एक महत्व कांची प्रोजेक्ट है तथा इसका एक हिस्सा पाकिस्तान द्वारा ऑक्यूपाइड कश्मीर से होकर गुजरता है यह भूमि पाकिस्तान के कब्जे में है।


कुल 10 अस्थाई देशों में पोलैंड अकेला राष्ट्र जो पाकिस्तान के साथ खड़ा दिख रहा है। हालांकि यह उसकी राजनयिक मजबूरी है। उसने भारत और पाकिस्तान के इस बखेड़े से खुद को काफी दूर रखा है लेकिन पोलैंड चूंकि इस वक्त यूएनएससी का रोटेटिंग प्रेसिडेंट है, इसलिए उसके सामने बैठक कराना ही अंतिम विकल्प है। इसका अर्थ यह कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि पोलैंड कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ है। वह किसी राष्ट्र के साथ नहीं है बल्कि अस्थाई देशों की ओर से बैठक की मेजबानी कर रहा है।


पोलैंड के अलावा बेल्जियम, कोट डीवोएर, डोमिनिक रिपब्लिक, इक्वेटोरियल गुएनी, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू और साउथ अफ्रीका पाकिस्तान को पूरी तरह नकार चुके हैं। इन देशों से पाकिस्तान को धेले भर का समर्थन नहीं मिलने वाला। तभी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने विश्व बिरादरी के सामने दुखड़ा रोया कि गए तो सबकी दहलीज पर लेकिन भाव किसी ने नहीं दिया।


संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में वीटो की प्रबल प्रक्रिया है। किसी भी एडॉप्शन (प्रस्ताव) को हरी झंडी मिलने या उसे नकारने में इसका रोल काफी अहम है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर की ओर से तय शर्तों के तहत, सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के वीटो का अधिकार प्रतिबंधित है, अर्थात यह मुख्य रूप से सुरक्षा परिषद के कामकाज से संबंधित के मामलों में लागू नहीं होता है।


ऐसी स्थिति में, सुरक्षा परिषद को निर्णय लेने के लिए नौ सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है, भले ही वे सुरक्षा परिषद के स्थायी या गैर-स्थायी सदस्य हों। गैर-स्थायी सदस्यों की शक्तियां भी "वीटो के सामूहिक अधिकार" की तरह मजबूत होती हैं (यदि सुरक्षा परिषद के कम से कम सात गैर-स्थायी सदस्य किसी ए़डॉप्शन के खिलाफ वोट देते हैं, तो भी समर्थन नहीं मिलता है)।


पाकिस्तान को जब इतने राष्ट्र नकार चुके हैं तो वह कश्मीर मुद्दे पर किस मुंह से खुलेआम बैठक करेगा। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र के सामने एक ही चारा है कि बैठक बंद दरवाजे के पीछे की जाए ताकि किसी देश की जगहंसाई होने से बच जाए।


बैठक बंद दरवाजे की पीछे चलेगी लेकिन इसमें पाकिस्तान का शामिल होना नामुमकिन है क्योंकि पाकिस्तान न तो स्थाई सदस्य है और न ही अस्थाई। बंद कमरे की बैठक का प्रसारण नहीं किया जाएगा। मतलब, पत्रकारों की उसमें पहुंच नहीं होगी।


भारत की ओर से संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त किए जाने के बाद पाकिस्तान ने यूएनएससी से कश्मीर मसले पर बैठक बुलाने की मांग की थी। दरअसल, अनुच्छेद 370 और 35ए के प्रावधानों के तहत ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। सुरक्षा परिषद में शामिल चीन को छोड़कर बाकी सभी चारों स्थायी सदस्यों ने प्रत्यक्ष तौर पर नई दिल्ली के इस रुख का समर्थन किया है कि यह विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मसला है। अमेरिका ने भी कहा है कि कश्मीर के संबंध में हालिया घटनाक्रम भारत का आंतरिक मसला है।