डेंगू के इलाज में लापरवाही: इसे संवेदनहीनता के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है
देहरादून । आमजन और गरीब आदमी की बात क्या कह सकते हैं जब प्रदेश की राजधानी देहरादून में स्थित एक नामी दंत चिकित्सक डॉ अश्वनी डोभाल की डेंगू से मौत वह भी शाक सिंड्रोम से, होना अपने आप में एक बड़ा कारण है, जिससे सरकार की संवेदनहीनता और अकर्मण्यता का बोध होता है। इस हादसे से पहले भी सचिवालय कर्मचारी और पुलिस मुख्यालय में डेंगू के लक्षण पाए जाने के समाचार हैं।
केवल देहरादून में ही डेंगू के मामले 600 के आंकड़े को छूने जा रहे हैं और डॉक्टर डोभाल सहित पांच लोगों की मौत का आंकड़ा भी सरकार के पास है, लेकिन तैयारी के नाम पर सरकार डेंगू के विकराल होते स्वरूप के पश्चात भी निल बटा सिफर ही दिखाई दे रही है। न तो प्रदेश में जांच की उपयुक्त व्यवस्था है और ना ही फागिंग जैसे सामान्य उपायों के लिए व्यापक कार्यवाही के संकेत दिखाई दे रहे हैं, जिसका परिणाम आए दिन डेंगू के मरीजों की बढ़ती हुई संख्या के रूप में दिखाई दे रहा है। व्यवस्था का आलम यह है पैरामेडिकल स्टाफ भी इधर उधर से मंगाना पड़ रहा है। एलाइजा जांच के लिए अभी तक केवल देहरादून अस्पताल पर दारोमदार है उसने भी तकनीशियनों की कमी है।
जागरूकता के नाम पर सरकार महज दिखावा करती नजर आ रही है इसमें भी कोई गंभीर कार्यवाही या परिणाम नजर नहीं आता है। आखिर कब तक सरकार आंकड़ों के भरोसे चलती रहेगी और लोग डेंगू के शिकार होते रहेंगे।
बरसात का सीजन व्यतीत होने को है लेकिन प्रदेश की राजधानी देहरादून में ही जगह-जगह गड्ढे बने हैं मेन होल की हालत खस्ता है जिससे पानी भरने और डेंगू मच्छर का लारवा पनपना आम बात है जबकि बरसात से पहले ही इसका निदान किया जाना चाहिए था।