भगवान कृष्ण की बांसुरी विधा से गायों का होता है इलाज, अधिक दूध देती है गाय

भगवान कृष्ण की बांसुरी विधा से गायों का होता है इलाज, अधिक दूध देती है गाय



जम्मू। एक समय था जब भगवान श्री कृष्ण कृष्ण की मुरली की धुन सुनकर ना केवल गोपियाँ बेसुध और मंत्रमुंग्ध हो जाती थी, बल्कि ग्वाल-बाल और गऊएं सभी नाचने लगते थे।


बाँसुरी का यह करिश्मा आज भी प्रत्यक्ष देखने को मिल रहा है जम्मू शहर के अंबफला स्थित एक गोशाला में, जहाँ गायों के संरक्षण, नस्लीय सुधार और उनके स्वास्थ्य की चिंता से आगे बढ़कर यहां की एक गोशाला उन्हें खुशनुमा माहौल दे रही है। उपचार के साथ 'बांसुरी थेरेपी' दिए जाने से बीमार गायों में भी आश्चर्यजनक परिवर्तन दिख रहा है। दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई है तो गोवंश का स्वभाव भी बदला है।


जम्मू शहर के अंबफला स्थित यह गोशाला 1960 में शुरू हुई थी। समाजसेवी मूलराज शास्त्री और उनके कुछ दोस्तों ने घायल, बीमार व लावारिस गायों को आश्रय देने के उद्देश्य से बनवाई। इसका देखरेख करने वाली ऑल जम्मू कश्मीर गोशाला समिति के प्रधान राजकुमार राजा बताते हैं कि गोशाला चलाने के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती। निजी स्त्रोत और लोगों के सहयोग से यह चल रही है। गायों की देखभाल के लिए 15 ग्वाले काम करते हैं।


इस गोशाला में 450 गायें और बछड़े पल रहे हैं। इनमें 250 साहिवाल, गीर, रेड सिंधी नस्ल और देसी गायें हैं। बाकी बछड़े-बछडि़यां हैं। इनमें कुछ गाय ऐसी हैं जो दूध नहीं देतीं। दिलचस्प यह कि गोशाला में पल रही गायें कहीं से खरीदी नहीं गई हैं। बीमारी की हालत में सड़कों पर पड़ीं या वाहनों की टक्कर से घायल होने पर इन्हें यहां लाया गया। यहीं इनका इलाज किया जाता है। सरकार से एक वेटनरी डॉक्टर मिले हैं, जो इनका इलाज करते हैं।


बताया जाता है कि इस गोशाला में कोई गाय बांधी नहीं जाती। सभी खुली रहती हैं। खुशनुमा माहौल देने के लिए रोजाना 12 घंटे बांसुरी की धुन सुनाई जाती है। सुबह छह बजे से दोपहर 12 बजे और दोपहर तीन बजे से रात नौ बजे तक बांसुरी बजती है। सुबह-शाम आरती होती है। समिति के सदस्य बताते हैं कि इससे गायों के स्वभाव में बदलाव आया है। पांच से दस फीसद दूध का उत्पादन बढ़ा है। बांसुरी की धुन शुरू होते ही सभी गायें एक-साथ खड़ी हो जाती हैं। राधे नाम की गाय तो झूमने लगती हैं। उसके पीछे अन्य गायें भी हो जाती हैं।


गौशाला समिति के प्रधान राजकुमार  के अनुसार एक बैठक में संगीतमय माहौल बनाने की सोच बनी। चूंकि भगवान कृष्ण भी गाय चराते समय बांसुरी बजाया करते थे, इसलिए तय हुआ कि बांसुरी की धुन पूरे गोशाला में बजाई जाए।


शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी के वेटनेरी विंग के वरिष्ठ डॉक्टर नीलेश शर्मा इसका चिकित्सकीय पक्ष बताते हैं। उन्होंने कहा, तनाव के माहौल में दुधारू पशु में ऑक्सीटोसिन हारमोन रिलीज नहीं हो पाता, जिससे पूरा दूध नहीं उतरता। संगीत से माहौल बदलता है। पशु तनाव से दूर रहता है। ऑक्सीटोसिन हारमोन रिलीज होने से दूध भी ज्यादा उतरता है। स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।