यातायात नियम: उत्तराखंड सरकार ने दी राहत भी यातना भी

यातायात नियम: उत्तराखंड सरकार ने दी राहत भी यातना भी



देहरादून। राज्य सरकार की कल हुई कैबिनेट बैठक में राज्य सरकार ने 15 विभिन्न  मुद्दों पर निर्णय लिया जिसमें से यातायात नियमों के अंतर्गत होने वाला चालान एक प्रमुख मुद्दा था। राज्य सरकार ने  कुछ  यातायात नियमों के उल्लंघन पर पहली बार दिया जाने वाला जुर्माना कम कर दिया है  लेकिन दूसरी बार किया जाने वाला जुर्माना केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम संशोधन 2019 के अनुकूल ही है। इससे सरकार की मंशा का भान होता है कि वह प्रदेश वासियों को राहत पहुंचाने को उत्सुक नहीं है। केवल जनता की भारी रोष के कारण प्रथम बार दिया जाने वाला जुर्माना कम किया गया है।


इस कड़ी में दुपहिया वाहन में ओवरलोडिंग पर ₹1000 जुर्माना होगा  साथ ही चालक के साथ पीछे बैठने वाले सहयात्री द्वारा हेलमेट ना पहनने पर ₹1000 जुर्माना एवं  दोनों मामलों में 3 माह के लिए लाइसेंस निरस्त किया जाएगा। इसी प्रकार ध्वनि और वायु प्रदूषण के मानकों का उल्लंघन करने पर पहली बार ढाई  हजार रुपए जुर्माना होगा एंबुलेंस या अग्निशमन को रास्ता ना देने पर 10000 के स्थान पर ₹5000 जुर्माना होगा बिना आरसी वाहन चलाने पर ₹5000 का जुर्माना होगा प्रतिबंधित स्थान पर हॉर्न बजाने पर ₹1000 तथा दूसरी बार ₹2000 जुर्माना होगा  सीट बेल्ट न लगाने पर ₹1000 जुर्माना होगा तेज आवाज वाला साइलेंसर उपयोग में लाने पर ₹1000 जुर्माना होगा यात्री गाड़ियों के संबंध में ओवरलोडिंग के मामले में ₹200 प्रति सवारी का जुर्माना होगा बच्चों की सेफ्टी बेल्ट लगाने पर ₹2000 का जुर्माना होगा स्टंट बाइक इन रेसिंग पर भी पहली बार ₹5000 का जुर्माना होगा जबकि दूसरी बार ₹10000 होगा निरस्त लाइसेंस होने पर भी वाहन चालन करने पर 10000 के स्थान पर ₹5000 जुर्माना होगा।


दूसरी तरफ सरकार ने मोटर वाहन अधिनियम  संशोधन 2019  के प्रावधानों से आगे जाकर कुछ  मामलों में जुर्माना राशि तय की है जिसमें जुर्माना अधिकारी का आदेश ना मानने पर ₹2000 जुर्माने का प्रावधान किया है तो यात्री वाहनों द्वारा यात्रियों को ले जाने से इंकार करने पर ₹500 का जुर्माना लगाया है वही  बिना टिकट या पास के यात्रा करने पर ₹500 का जुर्माना नियत किया है तथा वाहनों के मॉडिफिकेशन पर ₹1000 का जुर्माना निर्धारित किया गया है इसी प्रकार व्यवसायिक वाहनों से सामान बाहर निकलने पर हल्के वाहनों के लिए ₹2000 और भारी वाहनों के लिए ₹5000 जुर्माना तय किया गया है जबकि हल्के वाहन के ओवर स्पीड के मामले में  2000 और मध्यम और भारी वाहन की ओवर स्पीड मामले में ₹4000 जुर्माना तय किया गया है साथ ही बिना लाइसेंस वाहन में कंडक्टरी करने पर भी ₹5000 जुर्माना तय किया गया है।तथा
जानबूझकर सूचना न देने पर 2000 रुपये।


प्रदेश सरकार ने अधिकारियों को मनमानी का अधिकार देते हुए ऐसे अपराध जिनका कोई प्रावधान नहीं है पहली बार 500 रुपये दूसरी बार 1500 रुपये जुर्माने का प्रावधान किया है।


शारीरिक या मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों के लिए कोई व्यवस्था करने के स्थान पर उनके द्वारा वाहन चलाने पर पहली बार 1000 रुपये दूसरी बार 2000 रुपये के चालान का प्रावधान किया है।


सरकार ने विभिन्न विभागों के नियमों का निर्धारण और अनुपालन कराने के लिए अलग-अलग स्तर पर नियामक आयोग का गठन किया है जहां आम आदमी को अधिकार है कि वह अपनी बात कह सकें और किसी भी विसंगति विसंगति को दुरुस्त करवाया जा सके। इसी प्रकार सरकार ने विभिन्न स्तरों पर अपीलेट अथॉरिटी का निर्धारण किया हुआ है जहां विभाग अथवा विभागीय अधिकारियों से पीड़ित व्यक्ति अपील कर सकता है और राहत पा सकता है। लेकिन जुर्माना वसूलने को आतुर सरकार  एक तरफ तो जन सुविधाओं को नजर अंदाज कर रही है  वहीं दूसरी तरफ जनता की बात सुनने को तैयार ही नहीं है।हद तो यह है कि जहाँ कोई अपराध निर्धारित नहीं है, वहाँ भी जुर्माना वसूलने का अधिकार दिया गया है। इतना ही नहीं अधिकारी की बात न मानने (अघोषित रुप से घूस न देने) पर भी जुर्माना तय किया गया है।


हालांकि मोटर वाहन अधिनियम जनता की सुरक्षा और सुविधा के लिए बनाया गया है ताकि लोग नियम अनुसार सड़कों का उपयोग करें और स्वयं भी सुरक्षित रहें जिसके लिए सरकार द्वारा नियम बनाया जाना और उनका पालन कराया जाना भी अनिवार्य है लेकिन अनायास बढ़े हुए जुर्माने वह भी बिना किसी नियामक संस्था के तथा अधिकारियों को अनावश्यक अधिकार दिए जाने से यह स्पष्ट होता है कि सरकार की मंशा वाहन चालकों को सुविधा उपलब्ध कराने के स्थान पर अपनी तिजोरी भरने की अधिक है ध्यातव्य है कि यह तिजोरी सरकार और उसके अधिकारी अपने विवेक से इस्तेमाल करते हैं जिसमें जनहित के स्थान पर निहित स्वार्थ की झलक अधिक दिखाई देती है।