सिंगल यूज प्लास्टिक मामले में सरकार उद्योगपतियों के सामने बोनी साबित हुई

सिंगल यूज प्लास्टिक मामले में सरकार उद्योगपतियों के सामने बोनी साबित हुई



नई दिल्ली/ देहरादून। भारत सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक के मामले में भारत सरकार की नीति एक कदम आगे और दो कदम पीछे वाली दिखाई दे रही है भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस 2018 के क्रम में यह घोषणा की थी कि वह सिंगल यूज प्लास्टिक को 2022  तक परी तरह से प्रतिबंधित कर देगी किंतु ऐसा लगता है कि पहले ही चरण में सरकार के कदम डगमगाने लगे हैं  और वह प्लास्टिक उद्योग के सामने बोनी साबित हो रही है अब उसने  सिंगल यूज प्लास्टिक को पूर्णतया प्रतिबंधित करने के स्थान पर केवल जागरूकता मिशन तक स्वयं को सीमित कर दिया है।
भारत सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान को जन जागरूकता तक ही सीमित रखा है और प्लास्टिक पर पूरी तरह रोक नहीं लगाने का फैसला लिया है। इस संदर्भ में ट्विटर हैंडल 'स्वच्छ भारत' पर सरकार ने कहा है कि 11 सितंबर 2019 को पीएम मोदी द्वारा लॉन्च किए गए स्वच्छता ही सेवा मिशन का मकसद सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना नहीं है। बल्कि सरकार का मकसद सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता फैलाना है।
अगर सरकार सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण पाबंदी लगा देती है, तो ये उद्योग के लिए ठीक नहीं होगा क्योंकि अर्थव्यवस्था में सुस्ती है और इससे कईं लोगों की नौकरी खतरे में आ सकती है। इसलिए प्लास्टिक पर पूरी तरह रोक से स्थिति और बिगड़ सकती है।


प्राप्त जानकारी के अनुसार प्लास्टिक बैग्स, कप, प्लेट, छोटी बोतल, स्ट्रॉ और कुछ प्रकार के पाउच को बैन करने के लिए अभी कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। लेकिन यह प्रयास किया जाएगा कि प्लास्टिक कम से कम इस्तेमाल किया जाए। 


वहीं पर्यावरण मंत्रालय के नौकरशाह चंद्र किशोर मिश्रा ने कहा है कि, 'सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पाद जैसे पॉलिथिन बैग्स और स्टेरोफॉम के स्टोरेज, मैन्युफैक्चरिंग को लेकर सरकार राज्यों से मौजूदा कानूनों को लागू करने को कहेगी।'  अर्थात खुद तो भारत सरकार कुछ करेगी नहीं लेकिन राज्य सरकारों के ऊपर ठीकरा पड़ेगी जैसे कि वह चाइना के बने सामान के मामले में जैसे कि वह चाइना के बने सामान के मामले में अक्सर करती है कि जनता चीन का बना सामान ना खरीदें वह केवल भारतीय उत्पादों को ही खरीदें और उपयोग करें।


सिंगल यूज प्लास्टिक वह है, जिसका प्रयोग केवल एक ही बार किया जाए। इसमें प्लास्टिक की थैलियां, प्लेट, ग्लास, चम्मच, बोतलें, स्ट्रॉ और थर्माकोल शामिल हैं। इनका एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है। इस प्लास्टिक में पाए जाने वाले केमिकल पर्यावरण के साथ ही लोगों के लिए काफी घातक हैं। 
इस बात पर भी सरकारों द्वारा जोर दिया जा रहा है कि एक बार इस्तेमाल किए जा सकने वाली प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के स्थान पर वैकल्पिक संसाधनों के उपयोग किए जाएं ताकि पर्यावरण के प्रदूषण को रोका जा सके और भविष्य में होने वाले इसके घातक परिणामों से बचा जा सके।


ज्ञात हो कि प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज डेरिवेटिव में हुई थी। प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था। फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।


यहां यह स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्त्व होते हैं। इनका आकार 5 मिलीमीटर से अधिक नहीं होता है।


भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल ही में जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबिड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिये असुरक्षित बताया है।


अधिकांशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पन्न किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हजारों साल तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण के विषय में गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किए जाने की आवश्यकता है। स्थिति यह है कि वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ष तकरीबन 15 हजार टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। प्रतिवर्ष हम इतनी अधिक मात्रा में एक ऐसा पदार्थ इकठ्ठा कर रहे हैं जिसके निस्तारण का हमारे पास कोई विकल्प मौजूद नहीं है यही कारण है कि आज के समय में जहां देखो प्लास्टिक एवं इससे निर्मित पदार्थों का ढेर देखने को मिल जाता है। पहले तो यह ढेर धरती तक ही सीमित था लेकिन अब यह नदियों से लेकर समुद्र तक हर जगह नजर आने लगा है। धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं से लेकर समुद्री जीव भी हर दिन प्लास्टिक निगलने को विवश है। इसके कारण प्रत्येक वर्ष तकरीबन एक लाख से अधिक जलीय जीवों की मृत्यु होती है।
अनेकों कारणों और कारकों के होते हुए भी सरकार यदि अपनी नीतियों में इस प्रकार से परिवर्तन लाती है तो न केवल नीतिगत क्षरण होता है बल्कि आम जनता जिसे सरकार बाधित करती है इसी कार्य विशेष को करने के लिए और फिर बाद में उसी कार्य में सरकार स्वयं असहज हो जाती है तो इससे न केवल जनता को अनेकों तरह की परेशानियां उठानी पड़ती हैं बल्कि सरकार के प्रति उसका विश्वास भी डगमगाने लगता है इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार किसी भी नीति को बनाने से पहले उसका पूर्ण परीक्षण और सभी संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श के बाद निर्णय ले।